लोकदेवता मल्लीनाथ जी राठौड़

लोकदेवता राव मल्लीनाथ जी राठौड़ का जन्म मारवाड़ के राजपरिवार में हुआ था। ये मारवाड़ के शासक भी थे थे। बाद में इनकी रुचि आध्यात्मिक कार्यों में बढ़ने लगी और इन्होंने राजपाट का त्याग कर दिया।

पारिवारिक परिचय

लोकदेवता राव मल्लीनाथजी राठौड़ का मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सींहा की चौथी पीढ़ी के वंशज राव सलखा के यहां हुआ था। इनके जन्म के बारे में एक कथा कही जाती है। कहते हैं कि मारवाड़ के राजा राव सलखा के विवाह के लंबे समय तक उनके कोई संतान नहीं हुई थी। एक बार राव सलखा शिकार करने के लिए वन में गए। वन में भटकते हुए वे प्यास से बेहाल हो गए। तभी उन्हें एक साधु की कुटिया दिखाई पड़ी। उन्होंने साधु से पीने के लिए जल मांगा। साधु ने उन्हें अपने घड़े की ओर इशारा करते हुए कहा कि आप जितने लोटे जल पिओगे आपके उतने ही पुत्र होंगे। इस पर राव सलखा ने चार लोटा जल पी लिया। साधु ने एक बात और कही कि आपके जो बड़ा पुत्र होगा उसका नाम मल्लीनाथ रखना और उसका राज्याभिषेक योगी के वस्त्र पहनाकर करना। 

राव मल्लीनाथजी का रूपादे से विवाह

साधु के कहे अनुसार राव सलखा के चार पुत्र हुए। बड़े पुत्र का नाम राजा ने मल्लीनाथ रख दिया। बाद में जब मल्लीनाथजी का राज्याभिषेक किया गया तो उन्हें योगी के वस्त्र पहनाकर ही राज्याभिषेक किया गया। राव मल्लीनाथजी का विवाह रानी रूपादे के साथ किया गया।

रूपादे से प्रेरित होकर मल्लीनाथजी का आध्यात्म की ओर झुकाव

रानी रूपादे शुरू से ही आध्यात्मिक कार्यों में रुचि रखती थीं। उनके प्रभाव से मल्लीनाथजी का मन भी धार्मिक क्रियाकलापों में रमने लगा। राव मल्लीनाथजी ने रानी रूपादे से प्रभावित होकर उगमजी भाटी को अपना गुरु बना लिया।

राजपाट का त्याग

अपने गुरु उगमजी भाटी के संपर्क में आने के बाद राव मल्लीनाथजी का मन राजकार्य से उचटने लगा। जल्दी ही उन्होंने राजपाट का त्याग कर दिया और अपने भाई राव वीरमदेव को राज्य सौंप दिया। 

तिलवाड़ा में की तपस्या

राजपाट को त्यागकर राव मल्लीनाथजी तिलवाड़ा गांव (बाड़मेर) में पहुंच गए। उन्होंने तिलवाड़ा में रह कर अपना भजन-ध्यान शुरू कर दिया। वे आजीवन लोगों को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहे तथा लोगों का दुःख-दर्द दूर करते रहे। तिलवाड़ा में ही उन्होंने देह-त्याग किया। 

मालानी प्रदेश किस स्थान पर है

तिलवाड़ा के पास एक गांव है जिसका नाम मायाजाल गांव है। इस स्थान पर रानी रूपादे तपस्या किया करती थीं। रानी रूपादे की समाधि भी मायाजाल गांव में बनी हुई है। तिलवाड़ा और मायाजाल गांव के बीच का प्रदेश राव मल्लीनाथजी के नाम पर मालानी प्रदेश कहा जाता है।

मल्लीनाथजी का प्रमुख उपासना स्थल

बाडमेर जिले के तिलवाड़ा गांव में लूणी नदी के किनारे पर राव मल्लीनाथजी का प्रमुख उपासना स्थल है। इस स्थान पर उन्होंने तपस्या भी की थी और देह-त्याग भी यहीं किया था। राव मल्लीनाथजी की समाधि भी यहीं पर है। तिलवाड़ा गांव में हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में 15 दिनों तक चलने वाला एक मेला लगता है। मूलतः यह मेला एक सबसे प्राचीन पशु मेला है। कहते हैं राजस्थान का सबसे ज्यादा क्रय-विक्रय वाला पशु मेला यही है। 

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