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दो खामोश आंखें – 20

योगेन्द्र सिंह छोंकर
जी जाऊं
पी विसमता विष
रस समता बरसाऊँ
रहे सदा से
रोते जो
उनको जाय हसाऊँ
जो एक बार
फिर से देख पाऊँ
दो खामोश ऑंखें
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