मुगल सत्ता के खिलाफ ब्रज क्षेत्र के किसानों का नेतृत्व करते हुए अपने जीवन को बलिदान करने वाले वीर गोकला को सब जानते हैं। गोकला तिलपत गांव का जमींदार था। यह तिलपत गांव कहाँ है और उसका इतिहास क्या है यह बहुत कम लोग जानते हैं। स्थिति तो यह है कि कुछ लोग इस तिलपत गांव को मथुरा जिले में ही समझते हैं जबकि यह मथुरा से कहीं दूर है। गोकला का विद्रोह तो बाद की घटना है पर तिपलत की पहचान तो पौराणिक काल से है।
तिपलत गांव का पौराणिक महत्त्व
यह घटना महाभारत के युद्ध से पूर्व की है। जब श्रीकृष्ण पांडवों के दूत बनकर शांति प्रस्ताव के साथ कौरवों की सभा में गए थे। वहां उन्होंने दुर्योधन से पांडवों के लिए सिर्फ पांच गांव मांगकर संधि करने का प्रस्ताव किया था।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में …
‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
यह जो पांच गांव श्रीकृष्ण ने पांडवों के लिए दुर्योधन से मांगे थे उनकी सूची महाभारत में तो नहीं मिलती है। पर मान्यता यह है कि इन पांच गांवों में से तिलपत भी एक था। शेष अन्य चार गांव श्रीपत (सीही), बागपत, सोनीपत और पानीपत माने जाते हैं।
आइन-ए-अकबरी में तिलपत
अकबर के शासनकाल की तमाम घटनाओं और राज्य के छोड़े-बड़े विवरणों को अबुल फजल ने एक पुस्तक में लिखा था। अबुल फजल अकबर का एक दरबारी विद्वान था और उसके द्वारा लिखी पुस्तक का नाम आइन-ए-अकबरी है।
आइन-ए-अकबरी में दर्ज विवरण के अनुसार तिलपत एक परगना था। यह तिलपत का परगना दिल्ली सूबे के अंतर्गत पड़ता था। यहां पक्की ईंटों का एक दुर्ग था। शासन की और से यहां 40 घुड़सवार और 400 पैदल सिपाही नियुक्त थे। 1595 ईस्वी में तिलपत के जमींदार राजपूत, ब्राह्मण और गूजर थे। इस परगने की कुल कृषि योग्य भूमि 1,19,578 बीघा थी। इस तिलपत के परगने से अकबर को 30,77,913 दाम की सालाना आय होती थी। 40 दाम का मूल्य एक रुपये के बराबर होता था। बाद के वर्षों में इस परगने का दफ्तर तिलपत से हटाकर फरीदाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। उसके बाद तिलपत का राजनीतिक महत्त्व घट गया।
गोकला का विद्रोह
यह घटना उस समय की है जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने देशभर में मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था। इस आदेश के अमल में आते ही मथुरा का प्रसिद्ध केशवराव मन्दिर तोड़ डाला गया। इससे क्षेत्र के लोग आक्रोशित हो उठे। दिल्ली से आगरा के मध्य के किसान पहले से ही मुगल बादशाह से नाखुश थे। इन किसानों का नेतृत्व किया गोकला ने। गोकला जाट जाति का था और तिलपत गांव का जमींदार था। गोकला स्वयं जाट था पर उसके विद्रोह में क्षेत्र की हर जाति के किसानों ने साथ दिया। गोकला ने 10 मई 1669 ईस्वी को मथुरा के मुगल फौजदार अब्दुन्नवी को बशरा गांव के समीप युद्ध में मार डाला। गोकला के नेतृत्व में विद्रोही किसानों ने सादाबाद और मथुरा के परगनों में लूटमार की और मुगल शासन को पंगु बना दिया। इस विद्रोह को दबाने के लिए औरंगजेब को खुद सेना लेकर मथुरा जाना पड़ा। औरंगजेब ने हसन अली को मथुरा का नया फौजदार नियुक्त किया।
तिलपत का युद्ध
शुरू में मुगल सेना और विद्रोहियों के मध्य मथुरा में कुछ भयंकर मुठभेड़ हुईं। इन मुठभेड़ों से विद्रोहियों को नुकसान हुआ और वे तिलपत की ओर बढ़े। अब गोकला की संपूर्ण शक्ति तिलपत में केंद्रित हो गई। हसन अली और गोकला की सेना के मध्य तिलपत से बीस किमी दूर (वर्तमान बल्लभगढ़ के समीप) एक भयंकर युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में गोकला की सेना को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। अब गोकला और उसके अभी साथी तिलपत की गढ़ी में इकट्ठे हो गए। मथुरा के मुगल फौजदार हसन अली के नेतृत्व में शाही फौज ने तिलपत की गढ़ी को घेर लिया। यह दिसम्बर 1669 की अंतिम सप्ताह की घटना है। लगातार तीन दिन तक मुगल फौज ने तिलपत की गढ़ी को घेरे रखा। इसके बाद निर्णायक युद्ध लड़ा गया। इस भयंकर युद्ध में गोकला और उसके साथ जी जान से लड़े। पर दुर्भाग्यवश विजय हसन अली की हुई। शाही सेना के 4000 सिपाही मारे गए वहीं गोकला के 5000 साथी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और 7000 विद्रोही कैद किये गए। गोकला भी पकड़ा गया। 1 जनवरी 1770 को आगरा में गोकला की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई।
महात्मा सूरदास की तपस्थली
यह महात्मा सूरदास सोलहवीं सदी के प्रसिद्ध भक्त कवि सूरदास नहीं हैं बल्कि ये तो पिछली सदी के ही हैं। इन महात्माजी का पूरा नाम किशोरीशरण महाराज था जो राधाबल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी थे। महात्माजी का जन्म उत्तराखंड क्षेत्र में हुआ था। वर्ष 1930 ईस्वी में महात्मा जी ने तिलपत में आकर निवास करना शुरू किया। कहते हैं कि उस समय यहां बड़ी संख्या में स्त्रियां विधवा हो जाती थीं। पर महात्मा सूरदास जी के यहां आगमन के बाद यहां सुख, शांति हो गई और अकाल मौतों का सिलसिला रुक गया। महात्मा जी गांव के लोगों को ‘श्री राधा वल्लभ, श्री हरि वंश, श्री वृदांवन श्री मनचंद’ मंत्र दिया और इसका बार बार स्मरण करने को कहा। इसके असर से गांव सुखी व संपन्न हो गया। वर्तमान में बाबा की समाधि, मन्दिर और कुंड दर्शनीय हैं।
कहां स्थित है तिलपत
तिलपत वर्तमान में हरियाणा राज्य के फरीदाबाद जिले में स्थित है। यह दिल्ली और हरियाणा की सीमा के पास ही बसा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर दिल्ली की ओर जाते समय यह फरीदाबाद और बदरपुर बॉर्डर के मध्य सराय से राजमार्ग के दाहिनी ओर दो-तीन किमी दूर स्थित है। वर्तमान में यह फरीदाबाद की शहरी आबादी का हिस्सा हो चुका है।