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दो खामोश आंखें – 8

योगेन्द्र सिंह छोंकर
पीने को दो घूँट
जो रोपी अंजुली
उसके गोल घड़े के सामने
पाया
घड़ा खाली है
हर प्यास बुझाने को
काफी हैं
उसकी
दो खामोश ऑंखें
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