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दो खामोश आंखें – 23

योगेन्द्र सिंह छोंकर
मेरी ही
बदकिस्मती थी
जो न हो सका उनका
मुझे
अपना बनाना
ही तो चाहती थी
दो खामोश ऑंखें
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