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दो खामोश आंखें – 19

योगेन्द्र सिंह छोंकर
उमड़ते मेघ सावनी
दमकती चपल दामिनी
मंद शीतल बयार
बारिश की फुहार
कुदरत का देख
रूमानी मिजाज़
क्यों नहीं
मुस्कुराती
दो खामोश ऑंखें
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