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दो खामोश आंखें – 18

योगेन्द्र  सिंह छोंकर
देख
बर्तन
किसी गरीब के
चढ़ते सट्टे की बलि
आखिर
क्यों नहीं सुलगती
दो खामोश ऑंखें
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