योगेन्द्र सिंह छोंकर
कितना आसाँ था
जिनके लिए
मुझे
हँसाना, रुलाना, मानना
मनमर्जी चलाना
क्या उतनी ही
आसानी से
मुझे भुला भी पाएंगी
दो खामोश ऑंखें
कितना आसाँ था
जिनके लिए
मुझे
हँसाना, रुलाना, मानना
मनमर्जी चलाना
क्या उतनी ही
आसानी से
मुझे भुला भी पाएंगी
दो खामोश ऑंखें