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वृंदावन का मां धाम आश्रम और उसकी संस्थापक मोहिनी गिरी की कहानी

मोहिनी गिरी

डॉ. अशोक बंसल, वरिष्ठ पत्रकार

प्रसिद्ध क्रांतिकारी व लेखक लाला हरदयाल ने अपने लेख ‘निजी सेवा’ में लिखा है कि ‘कोई भी राजनैतिक व्यवस्था समाज में इंसान द्वारा इंसान की सेवा के विचार का विकल्प नहीं हो सकती, आदमी को आदमी की जरूरत हमेशा महसूस होती रहेगी।’ इस कथन का स्मरण मुझे वृंदावन में दो एकड़ भूमि में बनाये गए ‘माँ धाम’ में विचरण करते समय हुआ।

आश्रम ‘माँ धाम’ पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी की पुत्रवधु मोहिनी गिरी द्वारा स्थापित स्वयंसेवी संस्था ‘गिल्ड फॉर सर्विस’ द्वारा संचालित है। पिछले साल 85 साल की उम्र में दिवंगत हुई मोहिनी गिरी का नाम देश की उन चंद महिलाओं में शामिल किया जाता है जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाइयां भी लड़ीं और देश के अनेक स्थानों पर समाजसेवा का अलख जगाया। मथुरा के लोग नहीं जानते कि वृंदावन में मोहिनी गिरी की संस्था ‘मां धाम’ उनकी वैचारिक सोच का ईमानदार स्थल है।

मोहिनी गिरी को दिल्ली से वृंदावन लाने का श्रेय मथुरा की समाजसेवी महिला श्रीमती स्वराज्य लता गोयल को जाता है। मथुरा के पुराने उम्रदराज लोग जानते हैं कि राजनीति में सक्रिय रहकर श्रीमती गोयल ने समाज सेवा को अपने जीवन में एक मिशन बनाया और इसे पांच दशक तक बखूबी निभाया भी। श्रीमती गोयल की मुलाक़ात मोहिनी गिरी से हुई तो उन्होंने वृंदावन में विधवाओं के उत्पीड़न का उल्लेख किया। मोहिनी गिरी ने तत्काल अपनी सेवाओं के केंद्र में वृंदावन को शामिल किया और सन 1998 में ‘मां धाम’ की नींव पड़ी। आज 25 सालों में ‘मां धाम’ का परिसर और यहाँ किये जाने वाले कार्य किसी संवेदनशील व्यक्ति को यह सोचने को मजबूर करते हैं —- जीवन क्या है और हम इस संसार में क्यों आये है?

मोहिनी गिरी नाम ही बड़ा नहीं बल्कि उनके काम भी बड़े हैं। पद्म भूषण से सम्मानित, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं मोहनी गिरी की वैचारिक उद्दात्तता और पीड़ित मानवता के प्रति समर्पण के दर्शन ”मां धाम” में चहलकदमी करते हुए होते है। यहाँ दुखी महिलाओं का आवास है, नन्हे -मुन्नों के लिए स्कूल (व्यावसायिक नहीं) है और बुजुर्गों की काया को कष्ट देने वाले रोगों का उपचार केंद्र है।

मुझे ‘मां धाम’ परिसर में स्थित एक देवालय के दर्शन कर आश्चर्य हुआ और तब मेरे मन में मोहिनी गिरी के प्रति श्रद्धा का एक उबाल भी आया। दरअसल इस मंदिर में किसी भी देवता को स्थापित नहीं किया गया है। मुझे बताया गया कि मोहिनी गिरी ‘सर्वधर्म समभाव’ में यकीन करती थीं, अतः किसी भी धर्म का कोई भी व्यक्ति यहाँ आकर अपने मन के भीतर बैठे देव का स्मरण कर सकता है। परिसर में एक स्थल पर मुझे साईं बाबा की मूर्ति के दर्शन हुए तो मन में सवाल पैदा हुआ। ‘गिल्ड फॉर सर्विस’ के स्थानीय सलाहकार दीपक गोयल ने इस मूर्ति की रोचक कहानी सुनाई – ‘एक बार यहाँ महाराष्ट से एक फिल्म यूनिट आई थी। शूटिंग हुई। कहानी में साँईं बाबा को दिखाया जाना था। फिल्म यूनिट अपने साथ साईं बाबा को लाई थी। यूनिट वाले अपना बोरिया -बिस्तर समेट कर चले गए लेकिन अपने साईं को छोड़ गए। मोहिनी गिरी को मालूम हुआ तो उन्होंने ‘जिसका कोई नहीं उसके हम’ के सिद्धांत पर काम करते सांई बाबा के लिए एक अलग स्थल का निर्माण कराया और स्थापित कर दिया।

मोहिनी गिरी को वृंदावन के इस आश्रम से इतना लगाव था कि उन्होंने अपने दिल्ली में स्थित अपने निजी आवास के दो प्राचीन और विशाल दरवाजे वृंदावन के आश्रम के एक सभा कक्ष में जड़वा दिए। सौ साल पुराने दरवाजों ने आश्रम की इमारत को ‘हेरीटेज लुक’ प्रदान कर दिया है।

मोहिनी गिरी ने अपने जीवन का अधिकाँश समय पीड़ित मानवता और महिलाओं के दर्द को नजदीक से महसूस करने में व्यतीत किया और इसके लिए उन्होंने अनेक नारी निकेतन, स्कूल-कालेज, फैक्ट्री आदि का भ्रमण किया। एक बार एक जेल में एक ऐसी महिला कैदी मिली जिसे रेलवे यार्ड में कोयले के एक टुकड़े को चुराने के जुर्म में जेल के सींखचों के पीछे रहते छह साल हो गए थे। मोहिनी गिरी का कलेजा दहल गया और फिर जुट गईं उसे मुक्त कराने में। इसी प्रकार जब मथुरा में उनकी साथी स्वराज्य लता गोयल ने मथुरा जेल में बंद महिला रामश्री की खबर दी। रामश्री हत्या की गुनाहगार थी और मथुरा जेल में उसे सूली पर लटकाने के लिए इसलिए लाया गया था क्यों कि उत्तर प्रदेश में मथुरा ही एकमात्र जिला है जहाँ की जेल में महिला फांसी घर है। इस महिला की गोद में बालक था। मोहिनी गिरी ने स्वराज्य लता के साथ न जाने कितनी भागदौड़ की तब रामश्री की सजा आजीवन कारावास में तब्दील हुई। यह बात 1998 की है।

मोहिनी गिरी की विलक्षण सोच और कार्यशैली का एक अदभुत किस्सा वृंदावन के ‘माँ धाम’ से ही जुड़ा हुआ है। इसको बताये बिना वृंदावन के इस स्थल की कहानी अधूरी रहेगी। एक दशक पहले ‘मां धाम’ में कार्यरत एक सेवक की मृत्यु हो गई। होली का दिन था। मृतक को श्मशान ले जाने और अंत्येष्टि के लिए पुरुष न जुटे तो मोहिनी गिरी चिंतित हुईं। उन्होंने आश्रम की महिलाओं को मृतक पुरुष को श्मशान ले जाने और अंत्येष्टि करने को प्रेरित किया। ‘माँ धाम’ में हुई इस सामाजिक क्रांति से जब वृंदावन के पुरातन समाज में खलबली मची और विवाद छिड़ा तो मोहिनी गिरी ने कहा – ‘दुःख सुख में सारी जिंदगी पुरुषों के साथ बिताने वाली महिला उनके आखिरी वक्त में उनका दाह संस्कार क्यों नहीं कर सकती?’

मोहिनी गिरी और स्वराज्य लता गोयल दोनों नहीं रहीं लेकिन इस आश्रम के एक सभा कक्ष में दोनों पुण्यात्माओं की तस्वीरें बड़ी हिफाजत से लगाईं गईं हैं। ये तस्वीरें मेरे दोनों सवालों के जवाब देती प्रतीत होती हैं। सवाल फिर से दोहरा दूँ —- जीवन क्या है और इस संसार में हम क्यों आये हैं?

अफ़सोस यह है कि मुख्य सड़क से ‘मां धाम’ के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए हमें 300 मीटर की दूरी ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर चल कर तय करनी पड़ती है।

डॉ. अशोक बंसल.

(हिस्ट्री पंडित डॉटकॉम के लिए यह आलेख डॉ. अशोक बंसल ने लिखा है। अशोक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक है तथा मथुरा में रहते हैं।)

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