हिंदी कहानी
पायल कटियार (हिंदी लेखिका)
सावित्री अपने पति को मृत्यु के मुंह से छीनकर निकाल लाती है। यमराज उससे हार जाते हैं और उसके वचन में बंधकर उसके पति के प्राणों को छोड़ देते हैं। यह कहानी युगों-युगों हम सभी महिलाएं हर करवाचौथ को सुनती आईं हैं। यह कहानी है, मगर अब हकीकत में यमराज किसी महिला से वार्ता नहीं जिससे वह उन्हें हरा सके और अपने पति का जीवन वापस ले सके। अब तो यमराज किसी के भी प्राणों को लेकर चुपचाप चल देते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि इस धरती पर सावित्री जैसी और भी हो सकती हैं। शायद इसी लिए साक्षात्कार की वह दोबारा गलती नहीं कर सकते हैं।
मालती को पता है कि वह सावित्री नहीं है। न ही उसके बस में यमराज से अपने पति को वापस लाना है। इसलिए वह अपने पति के मृत्यु की पहले से तैयारी में जुटी हुई है। आंखों में अश्रुधारा बहती जाती है और वह पति से छिप-छिपकर सारी तैयारियों में लगी हुई है। लोग शादी की तैयारियां करते हैं, लोग बच्चे के जन्म से पहले तैयारियां करते हैं, लोग त्योहारों से आने की पहले से तैयारियां करते हैं, मगर क्या कोई इस तरह से भी तैयारी करता है? जिस तरह से मालती करने में लगी हुई है। मालती ऐसी तैयारियों में जुटी हुई है जो उसे पहले से नहीं करना चाहिए था या कोई भी स्त्री नहीं करना चाहती है। कैंसर के आखिरी स्टेज से गुजर रहे पति को वह तिल-तिलकर मरता देख रही है और पति की मन ही मन ईश्वर से मौत मांग रही है। यह जानते हुए कि वह पाप कर रही है। भला कौन सी ऐसी पत्नी होगी जो अपने पति की ईश्वर से गुहार लगाती होगी? मगर बदनसीब मालती की मजबूरी है पति की मृत्यु की गुहार लगाना। पति के कष्टों को देखते हुए वह इस पाप की भागिनी बनने को तैयार है। ठीक उसी तरह से जिस प्रकार राधा जी कृष्ण की पीड़ा दूर करने के लिए अपने चरणों की धूल देकर पाप की भागिनी बनना मंजूर कर लेती हैं, यह जानते हुए कि अपनी पग धूल देकर कष्ण के कष्ट को तो मिटा देंगी लेकिन पाप की भागी बन जाएंगी। लेकिन वह पाप की भागी बनने को तैयार हो जाती हैं। आज मालती भी उसी तरह से अपने पति के कष्ट मिटाने के लिए सारे पाप लेने के लिए तैयार है। पति के प्रेम से बढ़कर पुण्य और पाप तो नहीं हो सकता है। प्रेम भी ऐसा जिसमें अपना स्वार्थ तो कदापि नहीं है।
करवा चौथ आने वाली थी घर की सभी महिलाएं अपने-अपने लिए नई साड़ी गहने श्रृंगार के सामानों की खरीदारी की प्लानिंग बना रहीं थीं वहीं मालती के लिए शायद इस बार करवाचौथ का त्योहार कुछ और ही रंग लाने वाला था। मालती को इस बार लाल सिंदूर, लाल साड़ी की जगह शायद सूनी मांग के साथ सफेद साड़ी पहननी होगी। उसे इस बात का आभास हो चला था इसलिए उसने वह सब तैयारी कर ली जो पति की मृत्यु के बाद जरूरत पड़ने वाली थी। पति के लिए नये कपड़े, तुलसी के पत्ते हर रोज शाम होने से पहले तोड़कर रख लेती थी। न जाने कब इस तुलसी दल जरूरत पड़ जाए फिर शाम ढलने के बाद तो तुलसी को हाथ भी नहीं लगा सकेगी। गंगाजल, दीपक, घी की बत्ती, मुंह में डालने के लिए सोने का टुकड़ा यहां तक गंगा जी में अस्थियां विसर्जन की तैयारी भी करके रख ली। मालती जानती थी कि पैसे वालों के पास सौ लोग मदद के लिए आ जाते हैं मगर गरीब की मदद के लिए कोई आगे नहीं आता। सिर्फ पीठ पीछे बस बातें ही बनाते हैं। पति की इस गंभीर बीमारी में जो एक भी रिश्तेदार मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं कल पति के मरने के बाद बातें बनाने के लिए सबसे आगे खड़े होंगे। फिर समाज के रीति रिवाज इतने कठोर होते हैं जिन्हें गम का ख्याल नहीं होता है इन्हें तो दिल पर पत्थर रखकर निभाना ही होता है। यही विचार करते हुए मालती मन ही मन विचार करती है कि क्यों न पहले से ही तैयारी कर लूं ताकि जरूरत पड़ने पर किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। आज पति की बीमारी में जब कोई साथ नहीं दे रहा तो मैं इस समाज का साथ बाद में क्यों लूं? इसी सोच के साथ मालती आंखों के आंसू पोछते हुए उठती है और तैयारियों में जुट जाती है।
[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]