ब्रज राधा कृष्ण की अनूठी प्रेम भक्ति का पावन तीर्थ है! कृष्ण काल के बाद ब्रज में राधा कृष्ण की स्मृतियों से जुड़े लीला स्थलों के संरक्षण और संवर्धन का काम दो विभूतियों ने किया, जिनमें एक श्रीकृष्ण के पौत्र बज्रनाभ और उसके बाद मध्यकाल में 16वीं शताब्दी में दक्षिण से आये संत आचार्य महाप्रभु श्रील नारायण भट्ट ने किया!
रचे 52 संस्कृत ग्रंथ
माध्व सम्प्रदाय में दीक्षित नारायण भट्ट जी की ज्ञान और भक्ति को प्रमाणित मानते हुए तत्कालीन विद्वत व संत समाज ने नारद अवतार के साथ ब्रजाचार्य की उपाधि से विभूषित किया गया! नारायण भट्ट जी ने करीब 52 संस्कृतनिष्ठ ग्रंथों की रचना की, जिनमें से अधिकांश ग्रंथ अप्राप्य हैं!
लाड़लेय ठाकुर ने दिखाई राह
नारायण भट्ट जी का जन्म नरसिंह जयंती के दिन संवत 1588 वैशाख शुक्ला को दक्षिण के मदुरा नामक स्थान पर हुआ! बालावस्था में ही गोदावरी की परिक्रमा के दौरान ठाकुर ने विलुप्त हो चुके ब्रज का पुनः प्राकट्य करने का आदेश दिया! भट्ट जी ने ठाकुर जी से कहा कि यह दुरूह कार्य कैसे संभव होगा! मैं कैसे पहचान पाऊंगा कि कौन सा स्थल लीला स्थल है!ठाकुर जी ने स्वयं कहा कि मैं तुम्हारे साथ रहूंगा!यहाँ परेशानी होगी वहाँ मैं आपकी मदद करूंगा! स्वयं लाड़ले स्वरूप में ठाकुर जी भट्ट जी के साथ ब्रज आये! लाड़ले ठाकुर का यह स्वरूप बरसाना के निकट ऊंचागांव स्थिति ब्रजाचार्य पीठ में दाऊजी मंदिर में विराजमान है! लाड़ले स्वरूप के साथ नारायण भट्ट जी सबसे पहले राधाकुंड पंहुचे और अपने ब्रज प्राकट्य का श्रीगणेश किया!
रासलीलानुकरण का अविष्कार
भट्ट जी ने ब्रज के विलुप्त वन, कुंड, मंदिर आदि लीलास्थलियों का प्राकट्य कर उनका नामकरण, जीर्णोद्धार, पूजा पद्धति तैयार की! इसी के साथ ब्रजयात्रा का अनुकरण और रासलीला का आविष्कार किया! ब्रज के गोप बालको को ठाकुर जी और उनके बाल सखाओं का भेषधारण कराकर रासलीला की शुरुआत की!
बरसाना में श्रीजी के विग्रह का प्राकट्य
ब्रज के विलुप्त तीर्थ स्थलों का खोजते हुए बरसाना के निकट ऊंचागांव में रेवती रमण का प्राकटय कर मंदिर की स्थापना की, उसके बाद बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर राधा जी के विग्रह का प्राकट्य कर वहीं मंदिर की स्थापना कराई! उसके बाद ऊंचागांव में ब्रजाचार्य पीठ की स्थापना की और अपने परिवार के साथ यही रहने लगे! आज भी भट्ट जी के वंशज इसी स्थान पर रहते हैं!
नारयण भट्ट जी द्वारा ब्रज के पुनः प्राकटय, ब्रजयात्रा की शुरुआत और रासलीला अनुकरण के बारे में मथुरा अंग्रेज कलेक्टर और मथुरा संग्रहालय के संस्थापक एफएस ग्राउस ने अपने शोधग्रंथ डिस्ट्रिक्ट मेमोयर ऑफ मथुरा लिखा हैं! भक्तमाल में भी कहा गया है कि गोप्य स्थल मथुरा मण्डल बाराह बखाने, ते भट्ट नारयण प्रगट प्रसिद्ध पृथ्वी में जाने!
(यह आलेख हिस्ट्रीपण्डित डॉटकॉम के लिए विवेक दत्त मथुरिया ने लिखा है। विवेक पेशे से पत्रकार हैं और मथुरा में रहते हैं।)