कहानी
पायल कटियार
गर्मी की छुट्टियां शुरू होने वाली थीं। वर्षा हर साल की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में मायके पहुंचने की तैयारी कर रही थी। कभी सूटकेस सही करती तो कभी बैग्स, हर साल वह अपने बच्चों के साथ मायके में ही एक महीना बिताकर आती थी। जब तक बच्चों के स्कूल न खुल जाएं वह मायके में ही रहती थी। इस बार भी मायके जाने की तैयारी में लगी थी। मीना अपने बच्चों को आवाज देते हुए कहती है,- अपनी-अपनी जो भी चीज रखनी है बता दो वरना फिर वहां पर पहुंचकर कहोगे यह रह गया वो रह गया समझे। तीनों बच्चे अपनी मां की बात सुनकर कोई अपना लूडो तो कोई कैरम बोर्ड लेकर पहुंच जाता है पहुंच जाते हैं अपनी मां के पास।
वर्षा- अरे खिलौने के अलावा भी बहुत कुछ होता है हर वक्त बस खेलने का याद रहता है। अपनी-अपनी होली डे होमवर्क की कापी, किताबें और सभी प्रोजेक्ट की फाइल लेकर आओ ताकि छुट्टियों में उसे भी कंप्लीट करवा सकूं। तीनों बच्चे मां की बात सुन अपना अपना समान लेने चले जाते हैं। तभी फोन पर घंटी बजती है। वर्षा फोन उठाकर देखती है उसके पति आकाश का फोन था।
वर्षा- बताओ क्या कह रहे हो?
आकाश- सुनो तैयारी कर ली है क्या?
वर्षा- कर रही हूं, क्यों क्या हुआ?
आकाश- अभी दीदी का फोन आया था वह इस बार गर्मी की छुट्टियां बिताने अपने घर आ रही हैं। तुम तो हर साल जाती हो इस बार उनके साथ बिता लो। उनका भी तो मायका है। जब से शादी हुई है आजतक वह कभी भी मायके में रहने नहीं आईं हैं।
वर्षा- लंबी गहरी सांस भरते हुए- हां यह तो है। कब आ रही हैं? और कितने दिन के लिए आ रही हैं? वर्षा ने एक सांस में दो सवाल आकाश पर दाग दिये।
आकाश- इसी संडे को आ जाएगी यानि पांच दिन बाद।
ठीक है, कहते हुए वर्षा ने फोन काट दिया।
वर्षा की ननद उससे बड़ी थी लेकिन उसकी ननद की शादी उसके बाद हुई थी। उसकी वजह थी कि ननद की शादी जिससे होने वाली थी वह विदेश में जॉब करते थे और वापस इंडिया आने की तैयारी में थे जिसके लिए दो तीन साल लग सकते थे। इस बीच वर्षा के परिवार वाले वर्षा और आकाश की शादी करने का दबाव बना रहे थे। इस दबाव के चलते ननद ने भी यह कहकर उन दोनों की शादी करवा दी कि कम से कम कोई घर संभालने वाला तो आ जाएगा। घर में बूढी मां की सेवा के लिए कोई तो होगा। आकाश के पिता बचपन में ही चल बसे थे एक मां ही और बड़ी बहन ही थी उसके जीवन में। मां ने बहुत संघर्ष के साथ दोनो बच्चे पाले थे। अब दोनों ही पूरी तरह से सैटल हो चुके थे बस शादी करना ही बाकी रह गया था। आकाश की बड़ी बहन की सरकारी स्कूल में टीचर की जॉब और आकाश की बैंक में जॉब लग चुकी थी। बच्चों के पैरों पर खड़े होते ही अब आकाश की मां के हाथ पैरों ने जबाव दे दिया था। बीमारी रहने लगीं थीं। दोनों भाई बहन ही उनकी सेवा किया करते थे। इसीलिए आकाश की बड़ी बहन चाहती थी वह शादी होकर जाए उससे पहले आकाश की शादी हो जाए ताकि कोई तो हो जो घर संभाल सके। इन्हीं कारणों के चलते छोटा होने के बावजूद भी आकाश और वर्षा की शादी पहले हो जाती है। वर्षा भी समझदारी से घर परिवार को संभाल लेती है।
वर्षा की शादी एक साल बाद ही उसकी सास का भी देहांत हो गया था। दो साल बाद ही वर्षा की ननद की भी शादी हो गई थी। ननद की शादी के बाद अब वह बिल्कुल अकेली हो गई थी। घर में उसका बिल्कुल मन नहीं लगता था। इसलिए हर साल अपना मन बहलाने के लिए मायके भाग जाती थी। वर्षा की ननद को शादी के बाद कभी लंबे समय के लिए मायके आने का वक्त नहीं मिला। अपने बड़े परिवार की बड़ी बहू होने की अपनी जिम्मेदारियों को उठा रही थी। इस बार आने का प्रोग्राम बनाया तो वर्षा ने भी यही सोचकर अपना प्लान बदल दिया कि चलो इस बार दीदी को भी मायके में रहने का सुख दिया जाए।
संडे का दिन था आकाश सुबह जल्द उठकर एयरपोर्ट पर अपनी बहन को लेने के लिए निकल जाता है। इधर वर्षा उसके स्वागत में सब कुछ तैयार कर चुकी थी। वर्षा अपने तीनों बच्चों से- देखो बुआ जी आ रही हैं और सुनो इस बार उनके साथ आपके दो भाई बहन भी आ रहे हैं। अपने खिलौने से उन्हें भी खेलने देना, कोई झगड़ा नहीं करेगा। न किसी चीज को लेकर परेशान करेगा। बच्चे- बुआ जी के साथ हमारे भाई बहन कहां से आए?
वर्षा- आ जाएं तब देख लेना अब जाओ यहां से मुझे काम करने दो। तीनों बच्चे बुआ जी आएंगी हमें मेला भी घुमाएंगी। आकाश को अपने काम के चलते कभी फुर्सत नहीं मिलती थी कि वह बच्चों को लेकर कहीं घुमाकर लाए। इसलिए वह हर बार बच्चों से यही कहता था जब बुआ जी आएं तब घूमने जाना, इसलिए बच्चों में खुशी का ठिकाना नहीं था कि अब हमें बुआ जी घुमाने ले जाएंगी। तभी बाहर गाड़ी का हॉर्न बजता है। वर्षा खिड़की से झांकती है देखती है आकाश की ओर देखते हुए आ रही हूं कहते हुए गेट खोलती है। वर्षा की ननद गाड़ी से उतरती है उसके साथ साथ दो बच्चे भी उतरते हैं जिनकी उम्र पांच सात साल के बीच थी।
ननद के आते ही वर्षा ननद के पैर छूकर अपने बच्चों से भी पैर छूने का इशारा करती है। तीनों बच्चे बुआ जी नमस्ते कहते हुए पैर छूने के लिए झुक जाते हैं बच्चों को पैर छूता देख झट से आकाश की बहन बैठ जाती है और तीनों को गले लगा लेती है कितने समझदार हो गए हैं मेरे तीनों बच्चे। आप भी मामी जी से नमस्ते बोलो अपने बच्चों की ओर देखते हुए वर्षा की ननद कहती है। दोनों नमस्ते करते हैं फिर सभी हॉल में पहुंच जाते हैं।
सामान रखते हुए आकाश सोफे पर बैठ जाता है उसकी बहन भी अपना बैग एक साइड रखते हुए उसके पास ही बैठ जाती है। इधर वर्षा गर्मी के चलते पहले से ही लस्सी तैयार करके रखती है उसे लेकर हॉल में प्रवेश करती है।
वर्षा- लीजिए दीदी लस्सी पी लीजिए गर्मी की वजह से आप परेशान हो गई होंगी आप।
वर्षा की ननद- नहीं वर्षा मैं लस्सी नहीं पी सकती मेरा गला बैठा हुआ है। असल में ठंडा गरम हो गया है।
वर्षा- कोई नहीं मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूं। वर्षा चाय बनाने चली जाती है।
उसकी ननद कमरे में नजर दौड़ाते हुए- वर्षा यहां पर एक बाबू जी और मां की फोटो लगी थी वह कहां गई?
वर्षा- दीदी वह खराब हो गई थी इसलिए मैने उसे हटाकर यह सीनरी लगा दी है।
ननद- सही करवा लेती। त्योरियां चढ़ाते हुए भाई की ओर देखते हुए क्यों आकाश तेरे पास इतना भी समय नहीं कि मां और बाबूजी की फोटो सही करवा लेता या दूसरी बनवाकर लगा देता।
मोबाइल से ध्यान हटाते हुए आकाश- दीदी मेरे पास कहां टाइम है? इसलिए ही तो मैं वर्षा को भी एक माह के लिए उसके मायके भेज देता हूं ताकि एक माह तो मैं सुकून से रह सकूं।
ननद- अच्छा इसका मतलब मैं तुम लोगों को परेशान करने के लिए आ गई हूं?
तभी वर्षा चाय की ट्रे लेकर कमरे में प्रवेश करती है।
वर्षा- अरे नहीं दीदी आप कितने सालों बाद तो आईं हैं। ऐसे कैसे आप कह रही हैं। यह तो बस यूं ही बेकार की बातें करते हैं। आपके आने से तो सच में मुझे बहुत खुशी हुई है। चाय हाथ में देते हुए वर्षा भी पास रखे सोफे पर बैठ जाती है।
बच्चे बच्चों के साथ मस्त हो जाते हैं और वर्षा की ननद चाय पीकर हाथ मुंह धोने चली जाती है।
इधर आकाश की ओर देखते हुए वर्षा- खाने में क्या बनाना है?
आकाश- सुनो दीदी जब तक यहां रहें ध्यान रखना किसी भी खाने में लहसुन प्याज मत डालना। दीदी को पसंद नहीं है।
वर्षा- बिना लहसुन प्याज के भला कोई सब्जी कैसे अच्छी बन सकती है?
आकाश- अब वह तुम देखो। कहता हुआ वह भी खेल रहे बच्चों के पास चला जाता है। इधर वर्षा सोच विचार में लग जाती है कि मेरी भाभी भी लहसुन प्याज नहीं खाती है मगर मेरे पहुंच जाने पर वह हम सबको, वह सब बनाकर खिलाती थी जो उसे खुद को पसंद नहीं है। लेकिन मैंने उसकी परेशानियों को कभी नहीं समझा और हर सब्जी में प्याज डालने के लिए मजबूर किया तो कभी प्याज के पकोड़े भी तलवाए थे। यह सब विचार कर ही रही थी कि उसकी ननद कपड़े चेंजकर कमरे में आ जाती है।
ननद- तो खाने में क्या बना रही हो मुझे ज्यादा भूख नहीं है फिलहाल एक कप चाय और बनाकर दे दो। मैं तो अब खाना सीधे शाम को ही खाऊंगी, हां बच्चों को जरूर दाल-चावल बनाकर खिला देना क्योंकि गर्मी के दिनों में दोपहर में यह दोनों बस दाल चावल ही खाते हैं।
नेहा सुबह सब्जी पराठा बनाकर रख चुकी थी मगर अब दीदी का इशारा दाल चावल की ओर हो चुका था। ठीक है दीदी कहते हुए वह चाय बनाने और दाल चावल चढ़ाने के लिए किचन की ओर चल देती है।
उमस भरी गर्मी ऊपर से किचन का एग्जॉस्ट फैन भी खराब हो गया था। ऐसे में किचन में काम करना मतलब खाने के साथ खुद को भी उबालना था। वर्षा पसीने-पसीने हो चुकी थी उसने अपनी ननद के लिए चाय बनने रख दी और दूसरी ओर दाल चावल बनाने की तैयारियों में लग जाती है। चाय बनने के बाद वह आकाश को आवाज देती है- सुनों- आकाश हॉल से ही सुन रहा हूं, वर्षा – आज ही किचन का एग्जॉस्ट फैन सही हो जाए वरना ठीक न होगा। करवा दूंगा कहकर फिर से बच्चों के साथ मस्त हो जाता है।
इधर गर्मी में वर्षा किचिन में दाल चावल तैयार करती है ननद को चाय देती है और फिर सभी को दाल चावल खिलाकर कुछ पल के लिए बैठी ही थी कि शाम के साढ़ चार बज चुके थे।
वर्षा हॉल में आकर बैठती है कि आकाश का एक मित्र मिलने आ जाता है। जब उसे पता चलता है दीदी आईं है तो वह उनके पास आकर बैठ जाता है तीनों आपस में बातें करने लगते हैं। आकाश- वर्षा यार चाय ही बना लाओ। अब वर्षा को अंदर ही अंदर गुस्सा आने लगता है गर्मी की वजह से एक तो वैसे ही हाल बेहाल हो रहा है ऊपर से एक पल का आराम नहीं मिला आज तो, सोचते हुए वह तमतमाती हुई किचन में जाकर चाय बनाने लगती है। मन ही मन विचार करने लगती है कि मैं एक दिन में परेशान हो गई? अभी तो पूरा महीना पड़ा है दीदी एक माह के लिए आईं हैं। फिर इतने सालों बाद आने की वजह से उनसे मिलने वाले लोग भी आते जाते रहेंगे। दीदी के साथ-साथ इन आने जाने वालों की अलग से आवभगत करनी होगी। इन सभी विचारों में वह इतना खो गई कि चाय उफनकर बाहर की ओर निकल गई।
तभी आकाश की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की- वर्षा चाय?
वर्षा- ला रही हूं कहते वह चाय में चीनी डालकर चाय तैयार करके कपों में करती है। वर्षा चाय लेकर कमरे में आ गई। तीनों को चाय देते हुए कहती है- गर्मी से सर दर्द हो रहा है। आकाश वर्षा की परेशानी समझ जाता है कहता है – ऐसा करो तुम आराम करो मैं शाम को बाहर से खाना मंगवा लूंगा। तभी वर्षा की ननद बीच में बोल पड़ती है नहीं ऐसी गर्मी में बाहर का खाना सेहत के लिए सही नहीं है। तुम ऐसा करो आराम कर लो और वैसे भी अभी कौन खाना खा रहा है। रात की रात में देखी जाएगी। मैं बना दूंगी।
वर्षा- अरे नहीं दीदी आप इतने सालों बाद तो आईं हैं। खाना तो मैं ही बनाऊंगी आप परेशान मत हो कहते हुए वह एसी के ठीक सामने बैठ जाती है। तीनों आपस में पुरानी बातें करने लगते हैं। बचपन के किस्से कहानियों के बीच वह भूल जाते हैं वर्षा के सर में दर्द हो रहा है। वर्षा सोफे पर ही तकिया लगाकर लेट जाती है और आंख बंद कर सोचने लगती है कि मैं हर साल अपने मायके पहुंच जाती हूं और वह भी अपने तीनों बच्चों को लेकर साथ में मेरी बहन भी आ जाती है अपने दोनों बच्चों के साथ। 10 लोगों का खाना- पीना, सुबह का नाश्ता शाम की सब की अलग-अलग फरमाइश रहती है। मगर मेरी भाभी ने आज तक उफ तक नहीं की। क्या उसे गर्मी नहीं लगती?
हम सब जितने लोग होते हैं उतनी ही सभी की अलग- अलग फरमाइशें होती हैं। भाभी हमेशा हंसते हुए बस यही कहती अभी बनाकर देती हूं। कभी चेहरे पर शिकन तक न आने देती हैं।
वर्षा की भाभी कभी भी मायके नहीं जाती थी। जब भी उनसे पूछा जाता मायके के बारे में यह कहकर टाल देती क्या रखा है मायके में? मां से मायका होता है मां को मरे जमाना बीत गया मां के बिना मायके में अच्छा नहीं लगता इसलिए मायके जाने का मन नहीं करता है। वर्षा को आज पहली बार अपनी भाभी की परेशानियों का अहसास हो रहा था। वह कितना स्वार्थी हो गई थी उसे आज तक अपनी भाभी की परेशानियों को क्यों महसूस नहीं किया ऐसा विचार करते करते उसकी कब आंख लग गई उसे पता ही न चला। आंख खुली तो वह हड़बड़ाकर उठी देखा रात के नौ बज चुके थे। हॉल में उसके सिवाए कोई न था। बाहर आकर देखा तो बच्चे आराम से बैठे अपनी बुआ जी के बच्चों के साथ खाना खा रहे थे। वर्षा को देखते ही आकाश ने कहा- अब सर दर्द कैसा है?
वर्षा- आपने उठाया क्यों नहीं इतना देर तक सोती रही और आज बच्चों ने भी मुझे नहीं जगाया।
आकाश – जगाते कैसे दीदी से सभी को खास हिदायत जो दी थी कोई शोर नहीं करेगा। सबकी सब बाहर लॉन में ही खेल रहे थे अब उनकी बुआ जी ने खाना भी बनाकर खिला दिया।
वर्षा- किचन की ओर देखते हुए दीदी आप क्यों परेशान हो रही हो मुझे क्यों नहीं जगाया?
वर्षा की ननद- मैं यहां पर सिर्फ आराम करने ही नहीं आईं हूं आराम करवाने भी आई हूं। कोई नहीं अब तुम और आकाश भी आ जाओ तुम दोनों के लिए भी खाना लगा देती हूं गरमा गर्म आलू के पराठे और बूंदी के रायते के साथ पोदीने की चटनी भी तैयार है। इतना सबकुछ आपने अकेले किया दीदी अब आप खाइए मैं बनाती हूं वर्षा कहते हुए किचिन की सिंक में हाथ धोकर गैस के पास आ जाती है तभी उसकी ननद कहती है अब आज खा लो सुबह मुझे खिला देना गरम गरम।
वर्षा – अरे दीदी यह अच्छा नहीं लगता आप खाना बनाएं और मैं बैठकर खाऊं, आप दोनों भाई बहन बैठो मैं बनाती हूं। तभी ननद कहती है – जी नहीं आप दोनों बैठो कहते हुए वर्षा की ननद अब खाना लगाकर उसके सामने प्लेट कर चुकी थी। आज वर्षा अपनी ननद के आने के बाद कितने सालों बाद ससुराल में भी मायके जैसा कूल महसूस कर रही थी। उसकी आंखों में आंसू बह निकले। वह मन ही मन सोचने लगी कि मुझे यह ख्याल क्यों नहीं आया अपनी भाभी के लिए? क्या मेरा फर्ज नहीं था कि मैं भी उसे इस तरह से आराम दे सकती। सोचते हुए मन ही मन निश्चय किया इस बार मैं भी दीदी की तरह से ही अपनी भाभी पर दुलार लुटाकर ही आऊंगी। वर्षा और आकाश खाना खा रहे थे और उसकी दीदी गरम-गरम एक एक कर पराठे ला रही थी। वर्षा सच में आज पहली बार ननद भाभी के रिश्ते को समझ सकी थी।
(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती हैं और पेशे से पत्रकार हैं।)
[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]