योगेन्द्र सिंह छोंकर
ओ मेरी रहनुमाई के
दावेदारों
जरा सुनो
मेरी आवाज़
नहीं चाहिए मुझे
धरती का राज
गर सो सके तो
करा दो सुलभ
मेरे बच्चों को
भरपेट अनाज
भूखे गोबर को
लगता है हल्का
मिटटी भरा तशला
किताबों भरे बस्ते से
आखिर कब तक
राज़ के दिखा कर
सब्ज़ बाग़
माहिर मार्क्सों
मेरी नस्लों को
आंत विहीन रखोगे
सदियों से भूखा
मेरा शरीर
कैसे उठा पायेगा
राज़ का वजनी ताज