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लोकदेवता तेजाजी महाराज

लोकदेवता तेजाजी महाराज को सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इनकी कृपा से सर्पदंश के मरीज स्वस्थ हो जाते हैं। इनके थान पर मौजूद घोड़ला सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति का उपचार भी करते हैं। तेजाजी की प्रतिमा में हम देखते हैं कि वह अपनी घोड़ी लीलण पर सवार हैं तथा उनके एक हाथ में भाला या तलवार होती है तथा एक सर्प होता है जो उनकी जिव्हा पर डंस रहा होता है। 

तेजाजी महाराज का जन्म एवं परिचय

तेजाजी महाराज का जन्म 1074 ईसवी में राजस्थान के नागौर जिले के खड़नाल गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम ताहड़जी एवं इनकी माता का राजकुंवरि था। यह नागवंशीय जाट थे और इनका गोत्र धौल्या था। इनका विवाह अजमेर जिले के पनहेर गांव के रामचंद्र की पुत्री पेमलदे के साथ हुआ था। इनकी एक घोड़ी थी जिसका नाम लीलण था।

तेजाजी महाराज की कथा

लोकमान्यता के अनुसार तेजाजी महाराज की कथा कुछ इस प्रकार है : 

तेजाजी महाराज को भाभी का उलाहना देना 

एक बार तेजाजी की पत्नी पेमलदे अपने मायके पनहेर गई हुई थीं और तेजाजी अपने गांव में कृषि कार्य में संलग्न थे। एक दिन खेत पर काम करते हुए दोपहर के भोजन का समय हो गया पर उनकी भाभी उनके लिए भोजन लेकर समय पर नहीं पहुंची। इस पर तेजाजी क्रोधित हो गए और काफी समय बाद जब उनकी भाभी भोजन लेकर पहुंची तब उन्होंने रोष जताया और कहा कि उन्हें भोजन नहीं करना। इस पर उनकी भाभी ने उन्हें उलाहना देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी पत्नी पेमलदे को तो मायके में रख रखा है। इस पर तेजाजी ने अपनी पत्नी को लेने पनहेर गांव के लिए चल दिये। उनके घर के निकलते ही कुछ अपशकुन हुए जिससे उनकी माता राजकुंवरि चिंतित हो गईं और उन्होंने तेजाजी को जाने से रोका। पर तेजाजी नहीं रुके और पनहेर गांव के लिए चल पड़े। उनकी माता ने एक ज्योतिषी को बुला कर अपशकुन के प्रभाव के बारे में पूछा तो ज्योतिषी ने बताया कि तेजाजी की इस यात्रा में मृत्यु हो जाएगी। यह जानकर उनकी माता बेहद दुःखी हुईं पर वह तेजाजी महाराज को जाने से नहीं रोक सकीं।

लाछा गुजरी द्वारा तेजाजी महाराज को मनाना

तेजाजी अपनी पनहेर गांव में ससुराल के द्वार पर पहुंचे ही थे कि द्वार पर उनकी पदचाप सुनकर अंदर घर में बंधी गाय बिदक गई। उस समय उनकी सास गाय दुह रही थीं, गाय के बिदकने से सारा दूध बिखर गया। इस पर गुस्से में उनकी सास ने बिना यह जाने कि द्वार पर उनके दामाद खड़े हैं, उन्हें भला बुरा कहना शुरू कर दिया। इस पर तेजाजी एक बार फिर क्रोधित हुए और वापस लौट पड़े। उनकी पत्नी पेलमदे को इस प्रकरण की जानकारी हुई तो उसने तेजाजी को मनाने के लिए के लिए अपनी सखी लाछा गूजरी को भेजा। लाछा गूजरी तेजाजी के पीछे गई और किसी तरह उन्हें मनाकर अपने घर ले आई। 

लाछा गूजरी की गायों के लिए युद्ध

जिस रात तेजाजी लाछा गूजरी के घर पर रुके थे, उसी रात कुछ मेर (मीणा) लाछा गूजरी की गायों को खोल कर ले गए। लाछा गूजरी ने तेजाजी महाराज से अपनी गायों की रक्षा के लिए प्रार्थना की। तेजाजी महाराज अपनी लीलण घोड़ी पर सवार होकर मेरों के पीछे गए। मांडवालिया गांव में पहुंच कर उनका मेरों से युद्ध हुआ जिसमें उन्होंने मेरों को परास्त कर दिया और लाछा गूजरी की गायों को छुड़ा लिया। 

वचन पालन के लिए तेजाजी महाराज ने दी जान

लाछा गूजरी की गायों को मेरों के चंगुल से छुड़ा कर जब तेजाजी पनहेर पहुंचे तब लाछा ने उन्हें बताया कि सारी गायें तो वापस आ गईं पर एक बछड़ा अभी भी मेरों के पास रह गया है। तेजाजी महाराज उस बछड़े को मुक्त कराने के लिए एक बार फिर मेरों के ठिकाने की ओर चल दिये। रास्ते में उन्होंने देखा कि सैंदरिया गांव में एक स्थान पर आग लगी हुई है और एक सांप उसमें जलने वाला है। तेजाजी महाराज ने सांप को आग में से निकाल लिया ताकि वह जलने से बच जाए। पर सांप इस तरह खुद को बचाये जाने पर तेजाजी महाराज से रुष्ट हो गया। सांप ने कहा कि मैं आग में जल कर इस सर्प योनि से मुक्त होने वाला था पर आपने मुझे बचा कर बड़ा अपराध किया है। बदले में मैं आपको डंस लूंगा। इस पर तेजाजी महाराज ने सांप को वचन दिया कि मैं अभी एक बछड़े की रक्षा के लिए जा रहा हूँ। एक बार उसे बचा लूं तब तुम मुझे डंस लेना। उनके वचन को सुनकर सांप तेजाजी का इंतजार करने लगा। उधर तेजाजी ने पहले बछड़े को बचाकर उसे लाछा गूजरी तक पहुंचाया और फिर अपने वचन के अनुसार सैंदरिया गांव में सांप के पास पहुंच गए। जहां सांप में उन्हें उनकी जिव्हा पर डंस लिया। कुछ दूर जाने पर सुरसुरा नामक गाँव में पहुंचने पर उनकी मृत्यु हो गई। वर्तमान में सैंदरिया गांव अजमेर जिले की ब्यावर तहसील में पड़ता है और सुरसुरा गांव अजमेर जिले की किशनगढ़ तहसील में पड़ता है। तेजाजी महाराज की मृत्यु का समाचार उनकी घोड़ी लीलण ने उनके घर तक पहुंचाया।

सर्पदंश के उपचार के देवता

मान्यता है जिस तरह वचन पालन के लिए तेजाजी महाराज ने खुद को सर्पदंश के लिए प्रस्तुत किया उससे प्रभावित होकर सांप ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भी आपकी उपासना करेगा उसे सर्पदंश से बच जाएगा। 

किसानों के देवता के रूप में मान्यता

तेजाजी महाराज को मान्यता किसानों के कल्याणकारी देवता के रूप में भी है। तेजाजी स्वयं कृषि कार्य से जुड़े हुए थे। आज भी बहुत से किसान कृषि कार्य शुरू करने से पहले तेजा-टेर गाते हैं। तेजाजी महाराज के गीतों को तेजा-टेर कहा जाता है। कहते हैं तेजा-टेर गाने से कृषि में अच्छी उपज होती है।

तेजाजी महाराज के मुख्य उपासना स्थल

तेजाजी महाराज का मुख्य मंदिर नागौर जिले के परबतसर गांव में है। यहां भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की दशमी को एक पशु मेला लगता है। यह पशु मेला राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला होता है। परबतसर गांव में तेजाजी महाराज की मूर्ति वर्तमान में है, पूर्व में वह मूर्ति सुरसुरा गांव में थी। सुरसुरा गांव वह स्थान है जहां तेजाजी महाराज की मृत्यु हुई थी। जोधपुर के महाराजा अभय सिंह (1724-49) के शासनकाल में परबतसर का हाकिम तेजाजी महाराज की मूर्ति को सुरसुरा गांव से ले आया था और उसने मूर्ति को परबतसर गांव में स्थापित कर दिया था। उसके बाद से यह स्थान तेजाजी महाराज के मुख्य उपासना स्थल के रूप में माना जाने लगा।

परबतसर गांव के अलावा अजमेर जिले के सैंदरिया, सुरसुरा व भावंता गांव में भी तेजाजी महाराज के उपासना स्थल हैं। सैंदरिया वह गांव है जहां तेजाजी को सांप ने डंसा था और सुरसुरा वह स्थान है जहां तेजाजी महाराज की मृत्यु हुई थी।

तेजाजी महाराज के मंदिर अन्य भी बहुत स्थानों पर हैं। उनके मंदिरों को थान कहा जाता है जो एक चबूतरे की तरह होता है। इन थानों पर जो पुजारी रहते हैं उन्हें घोड़ला कहते हैं। सर्पदंश की दशा में जब पीड़ित व्यक्ति को थान पर लाया जाता है तब यही घोड़ला पीड़ित व्यक्ति का उपचार करते हैं।

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