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लोकदेवता पाबूजी राठौड़


लोकदेवता पाबूजी राठौड़ लक्ष्मण के अवतार माने जाते हैं। ये राठौड़ वंश के राजपूत थे और मारवाड़ रियासत के पहले शासक राव सींहा के वंशज थे।

पाबूजी राठौड़ का सामान्य परिचय


पाबूजी राठौड़ का जन्म सन 1239 ईसवी में कोलूमण्ड गांव में हुआ था। यह कोलूमण्ड गांव वर्तमान में जोधपुर जिले में पड़ता है। इनके पिता का नाम धांधल देव राठौड़ था तथा इनकी माता का नाम कमलदे था। इनका विवाह अमराना के राजा सूरज सिंह सोढा की पुत्री सुप्यारदे के साथ हुआ था। यह अमराना वर्तमान में पाकिस्तान में हैं और अमरकोट के नाम से जाना जाता है। इनके बड़े भाई का नाम बूढोजी था।

बहनोई जीन्दराव खींची से विवाद


इनकी कथा कुछ इस प्रकार है। कोलूमण्ड गांव में देवल चारणी नाम की महिला रहती थी। देवल चारणी के पास एक अद्वितीय घोड़ी थी। इस घोड़ी का नाम केसर कालमी था। पाबूजी की बहन का विवाह जायल (वर्तमान में नागौर जिले में) के जागीरदार जीन्दराव खींची के साथ हुआ था। जीन्दराव खींची एक बार अपनी ससुराल कालूमण्ड आये जहां उन्होंने देवल चारणी की घोड़ी केसर कालमी को देखा। खींची को वह घोड़ी पसन्द आयी। उन्होंने देवल चारणी से वह घोड़ी देने को कहा तो उसने मना कर दिया। इस पर खींची और देवल चारणी के मध्य विवाद हो गया। पाबूजी ने इस विवाद को शांत कराया। खींची को घोड़ी नहीं मिल पाई इसलिए वह रुष्ट होकर चला गया।

पाबूजी के विवाह का प्रसंग


कुछ समय बाद पाबूजी का विवाह अमरकोट के राजा की पुत्री से तय हो गया। पाबूजी ने अपने बहनोई को विवाह में आमंत्रित किया पर वह द्वेषवश नहीं आया। पाबूजी जब विवाह के लिए अमरकोट जाने लगे तब देवल चारणी ने वह घोड़ी उन्हें दे दी। पाबूजी देवल चारणी की घोड़ी केसर कालमी पर सवार होकर गए हैं यह जानकर खींची बहुत क्रुद्ध हुआ। वह गुस्से में कालूमण्ड आया और देवल चारणी की गायों को लूटकर ले गया। 

देवल चारणी के गायों की रक्षा को प्रस्थान


देवल चारणी इस सब से बहुत आहत हुई और रोती हुई अमरकोट की ओर चल दी। जब वह पाबूजी के विवाह स्थल पर पहुंची तब पाबूजी सुप्यारदे के साथ विवाह कर रहे थे। तब तक चार फेरे हो चुके थे और तीन फेरे शेष थे। देवल चारणी ने रो-रोकर अपनी व्यथा कहनी शुरू की। वह पाबूजी से तत्काल मदद करने की गुहार करने लगी। तब पाबूजी ने उससे कहा कि अभी मेरे विवाह के चार फेरे ही हुए हैं। फेरे सात होने पर मैं तुम्हारी मदद के लिए चलूंगा। लेकिन देवल चारणी नहीं मानी और लगातर विलाप करती रही। इस पर पाबूजी ने कहा कि ठीक है मेरा विवाह चार फेरों के साथ ही सम्पन्न हो गया। और वह अपने साथियों के साथ चारणी की गायों की रक्षा करने के लिए चल दिये।

पाबूजी की वीरगति


पाबूजी और जीन्दराव खींची के मध्य देंचू गांव (वर्तमान जोधपुर जिले में) में युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवल चारणी की गायों की रक्षा करते हुए पाबूजी राठौड़ वीरगति को प्राप्त हो गए। यह युद्ध में पाबूजी के साथ उनके बड़े भाई बूढोजी की भी मृत्यु हुई। बाद में बूढोजी के पुत्र रुपनाथजी ने जीन्दराव खींची को मारकर अपने चाचा और पिता की मृत्यु का बदला लिया था। रुपनाथजी भी लोकदेवताओं में गिने जाते हैं।

पाबूजी के प्रमुख पूजा स्थल


पाबूजी की समाधि देंचू गांव में बनी हुई है। पाबूजी का प्रमुख पूजा स्थल इनके जन्मस्थान कोलूमण्ड गांव में बना हुआ है। इस मंदिर में पाबूजी की घोड़े पर सवार प्रतिमा है। इस प्रतिमा में पाबूजी की पाग (पगड़ी) बायीं ओर झुकी हुई है। पाबूजी का वार्षिक मेला कोलूमण्ड गांव में ही लगता है। यह मेला चैत्र मास में अमावस्या को लगता है। कोलूमण्ड कि अलावा उदयपुर जिले के आहड में भी पाबूजी का एक मन्दिर बना हुआ है। पाबूजी के मन्दिर में पुजारी राठौड़ वंश के राजपूत होते हैं।

पाबूजी के भक्त व सहयोगी


पाबूजी राठौड़ के तीन भक्त/सहयोगी हैं चांदा, डेरा और हरमल। ये तीनों देंचू के युद्ध में खींची से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।

लोकदेवता के रूप में पाबूजी


पाबूजी को रेवारी या राइका जाति का आराध्य देव माना जाता है। कहते हैं कि पाबूजी मारवाड़ में पहली बार सांडे (ऊंट) लेकर आये थे। ये ऊंट पाबूजी सिंध प्रांत से लाये थे। पाबूजी ने ऊंट लाकर रेवारी या राइका जाति के लोगों को दे दिए थे। इस जाति के लोग ऊंट पालक होते हैं और पाबूजी को अपना आराध्य देव मानते हैं। ऊंटों के बीमार होने पर पाबूजी की पूजा की जाती है। पाबूजी के मंत्र बोले जाते हैं और ऊंट के पैर पर पाबूजी के नाम का डोरा, धागा या तांती बांधते हैं। इसके अलावा भील और नायक या थ्योरी जाति के लोग भी पाबूजी को अपना आराध्य देव मानते हैं। कहते हैं कि एक बार पाबूजी राठौड़ ने नायक जाति के लोगों की गुजरात के शासक अन्ना बाघेला से रक्षा की थी। पाबूजी प्लेग रक्षक देवता भी माने जाते हैं। इनके जन्म एवं मृत्यु के दिन इनकी लोकगाथा ‘पाबूजी के पांवड़े’ गाए जाते हैं।

पाबू प्रकाश


पाबूजी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए एक ग्रन्थ लिखा गया है। इस ग्रन्थ का नाम पाबू प्रकाश है। इस ग्रन्थ के लेखक आसियां मोड़ हैं। 

पाबूजी की पड़ (फड़)

पाबूजी की फड़ सर्वांधिक लोकप्रिय फड़ हैं। इसकी मूल प्रतिलिपि वर्तमान में जर्मनी के संग्रहालय में रखी हुई हैं। पाबूजी की पड़ का गायन नायक या थ्योरी जाति के भोपे करते हैं। फड़ गाते समय रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र बजाया जाता हैं। पड़ वाचन के दौरान भक्तजन पावड़े गाते हैं। भक्तजनों द्वारा पावड़े गाने के दौरान मांट नामक वाद्ययंत्र बजाया जाता है। पाबूजी का मेला चैत्र अमावस्या को भरता हैं।

पँचपीरों में से एक हैं पाबूजी


पाबूजी राठौड़ राजस्थान के पँचपीरों में से एक हैं। पँचपीरों में पाबूजी के साथ साथ रामदेवजी, हड़बूजी, गोगाजी और मेहाजी शामिल हैं। पँचपीर वे लोकदेवता हैं जिन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों के लोग समान श्रद्धा से पूजते हैं। 

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