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जीवन दर्शन

जीवन दर्शन
कंक्रीट के इस जंगल में
आपाधापी के इस दंगल में
आधुनिकता की होड़ में
दौलत की अंधी दौड़ में
आज हर इन्सान
भूल चूका हें अपनी पहचान
गगनचुम्बी इमारतो में रहकर भी
अंजान आसमा की रंगत से
अपनेपन की अपेक्षा के साथ
अपनों से दूर
हर आदमी नज़र आता हें
एक बंधुआ मजदूर
गायब हें जिसके होठो की हंसी
चहरे का नूर
नहीं नज़र आते
आँखों में सतरंगी सपने
तलाश भी नहीं कर पता
कहाँ खो गए अपने
क्या हो गया हें
आज
जीवन-दर्शन
जीव-न दर्श-न
———————
द्वारा
योगेन्द्र सिंह छोंकर
बरसाना (भारत)
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