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गुलदस्ता

कहानी

(पायल कटियार)

आज मैडम ने आखिर गुलदस्ता क्यों मंगवाया है? आज तो कोई ओकेशन भी नहीं है। सभी के मन में यह विचार में चल रहे थे। इस बात को हैरानी के साथ सभी छात्र और छात्राएं एक दूसरे से पूछ तो रहे थे मगर जबाव किसी के भी पास न था। 

वैशाली ने कहा चलो कोई नहीं जरूर आज हमें कुछ नया समझाने वाली हैं इसलिए ही यह मंगवाये हैं। तभी शबनम भी आ जाती है और उसके हाथ में भी एक बड़ा खूबसूरत सा गुलदस्ता होता है, वह सभी को दिखाते हुए कहती है कि देखो कितने सुंदर और ताजे फूल हैं इसमें। सभी एक साथ कहते हैं वॉवउ। राखी, मदन, फैजल, कादिर, रूबिना सभी अपने अपने गुलदस्ते लेकर एसेंबली हॉल में पहुंच जाते हैं। एक दिन पहले ही प्रिंसिपल मैम ने सभी को रंग बिरंगे गुलदस्ते एसेंबली हॉल में ही सीधे लाने को कहा था इसलिए सभी बच्चे इन खूबसूरत गुलदस्तों को लेकर पहुंच जाते हैं। 

प्रार्थना होती है, राष्ट्रगान होता है और अंत में प्रतिदिन की भांति प्रतिज्ञा भी होती है। सभी बच्चों को अपने-अपने स्थान पर ही खड़े रहने का आदेश दिया जाता है। सभी बच्चे अपने-अपने गुलदस्ते के साथ वहां पर खड़े रहते हैं। आज किसी का भी मन प्रार्थना और प्रतिज्ञा में नहीं लगा था बस सभी के मन में एक ही जिज्ञासा थी आखिर यह गुलदस्ते क्यों मंगवाये गये हैं।

खैर प्रतिज्ञा समाप्त हुई और प्रतिज्ञा मैम ने बीना मैम को आदेश दिया- आप अब सभी बच्चों के गुलदस्ते एकत्र करके यहां मेरे सामने लाकर रख दो। जी मैम कहते हुए बीना मैम और कविता मैम दोनों ने सारे गुलदस्ते जमा कर दिये प्रिंसिपल मैम के सामने।

इसमें से सबसे खूबसूरत गुलदस्ता किसका है? प्रिंसिपल मैम ने सभी बच्चों से पूछा। सभी बच्चे एक ही स्वर में चिल्लाए, शबनम का। ठीक है उसे मुझे हाथ में लाकर दो, प्रिंसिपल मैम बहुत ही खूबसूरत थीं मगर थीं एकदम सख्त। वह अनुशासन और पढ़ाई के मामले में किसी भी प्रकार की लापरवाही बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करतीं थीं। सभी उनसे डरते थे। वह हमेशा कुछ नया समझातीं और उनके समझाने का अंदाज भी निराला ही होता था। आज भी कुछ न कुछ समझाने वाली ही थीं। बीना मैम की  समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था बस उन्होंने उस गुलदस्ते को उठाया और प्रिंसिपल मैम को पकड़ा दिया। प्रिंसिपल मैम ने फिर से एक बार सभी बच्चों से पूछा अच्छा यह बताओ कि यह खूबसूरत क्यों है? तभी वहां पर आगे की पंक्ति में बैठी एक बच्ची ने कहा कि इसमें गुलाब बहुत सुंदर लग रहा है दूसरी लड़की ने कहा इसमें गेंदा ज्यादा सुंदर लग रहा है, तीसरी ने कहा कि फूल तो हैं ही सुंदर, लेकिन इसकी पत्तियां और टहनियां भी खूबसूरत हैं। बच्चों की बात सुनकर किरन मैम कहने लगीं मैम फूल पत्ती से सबसे ज्यादा खूबसूरत इसे तैयार करने का ढ़ग है कितने अच्छे तरीके से इसे सजाया है। इसलिए इसमें सजे कांटे भी खूबसूरत लग रहे हैं। अच्छा, प्रिंसिपल मैम ने गुलदस्ते को ध्याने से निहारते हुए कहा। प्रिंसिपल मैम गुलदस्ते को अपने हाथ में उठाकर देख ही रहीं थीं और सभी बच्चे टीचर एक के बाद एक उसकी खूबसूरती के बारे में बखान कर रहे थे लेकिन यह क्या? प्रिंसिपल मैम ने उसमें से गुलाब के सारे फूल निकाल कर एक साइड में रख दिये, गेंदा अलग कर दिये, कांटे अलग और उसकी एक एक पत्ती अलग करके रख दी। क्या बच्चे क्या टीचर प्रिंसिपल मैम की इस हरकत को देखकर आवाक से रह गये। मगर किसी ने हिम्मत नहीं जुटाई यह पूछने की मैम आप इस खूबसूरत गुलदस्ते को क्यों तोड़ रही हो? खूबसूरत गुलदस्ता अब एक कूड़े के ढ़ेर में बदल चुका था। इसी तरह से मैम ने आठ दस गुलदस्ते तोड़कर कूड़े में बदल दिये।

तभी एक बच्ची ने हिम्मत जुटाते हुए प्रिंसिपल मैम से सवाल कर ही लिया मैम आपने इन गुलदस्तों को क्यों तोड़ दिया? यह तो बहुत खूबसूरत लग रहे थे, अब तो बेकार लग रहे हैं। सच में? प्रिंसिपल मैम ने बच्चों की ओर हैरत भरी निगाहों से पूछा, जी मैम सभी बच्चों की आवाज अब सहमी सी लग रही थी। बात जरूर कुछ सीरियस है इतना तो हर किसी की समझ आ गया था मगर क्या बात थी जो मैम ने इतनी बेरहमी से इन्हें उजाड़ दिया ऐसा विचार हर एक के मन में चल रहा था।

प्रिंसिपल मैम ने सभी बच्चों को बैठने का आदेश दिया, सभी अपनी-अपनी जगहों पर शांति से बैठ गए। सभी के कान मैम की ओर ही लगे हुए थे आखिर ऐसा बोलने वाली हैं मैम?

प्रिंसिपल मैम ने अपना चश्मा उतारकर एक साइड टेबल पर रख दिया और सभी टीचर को भी बैठने का इशारा किया। सभी बैठ गए। प्रिंसिपल मैम अब माइक के पास आईं। उन्होंने माइक संभाला और कहा। 

आप सब भी तो हमारे खूबसूरत बगीचे को उजाड़ने में तुले हुए हैं।

एक टीचर ने कहा- नहीं मैम हमारे स्कूल का कोई भी बच्चा बगीचे को उजाड़ना तो दूर एक पत्ती तक नहीं तोड़ता है। हमने इन्हें पर्यावरण के बारे में अच्छे से समझाया हुआ है। बहुत समझदार बच्चे हैं हमारे स्कूल के। 

प्रिंसिपल मैम- अच्छा, सच में? जिस तरह से आपके स्कूल का बगीचा रंगबिरंगे फूलों से खूबसूरत लगता है, आपके गुलदस्ते रंग बिरंगे फूलों से खूबसूरत लग रहे थे क्या उसी तरह से हमारा देश अलग-अलग धर्म, पहनावा, खानपान रहन सहन से खूबसूरत नहीं लगता है? क्या इसे उजाड़ने से हमारा देश सुंदर दिखने वाला है या सशक्त रहने वाला है?

आजकल मैं देख रहीं हूं कि आप लोगों का पढ़ाई में मन कम और सामाजिक बुराईयों पर विचार विमर्श में ज्यादा लग रहा है। टीचर भी जाति बिरादरी धर्म को लेकर चर्चा करते रहते हैं। आखिर कितने गुट बनाएंगे आप लोग? धर्म के नाम पर? जाति के नाम पर? प्रांत के नाम पर आखिर क्यों इस देश की खूबसूरती को मिटाने पर तुले हैं? कश्मीर अलग कर दिया जाए, पंजाब अलग कर दें, तमिलनाडू अलग कर दें, सभी धर्म के लोग आज लड़ रहे हैं एक दूसरे को उजाड़ने में लगे हुए हैं क्या यह सही है? नहीं है न?

हम रोज गाते हैं-सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलस्तां हमारा, कहां गए यह बोल कहां जा रही है हमारी सोच? राजनीति के घिनौने खेल में हमारा गुलदस्ता उजाड़ रहा है, और हम अपने ही हाथों से इसे उजाड़ने में सहयोग कर रहे हैं। सभी बच्चों की आंखे खुल चुकी थीं शायद सभी के आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। सभी बच्चों की समझ आ चुका था कि हमें मजहब के नाम पर बांटा जा रहा है हमारा दुरुपयोग किया जा रहा है। लेकिन अब, जितनी एनर्जी हम इन बातों में लगा रहे थे अब उससे ज्यादा एनर्जी अपनी पढ़ाई में लगाएंगे ताकि हम एक और मिसाइल मैन बन सकें, एक और शास्त्री बन सकें। मैम ने अपनी बात कहकर जा चुकीं थीं। सभी बच्चे लाइन में चलते हुए अपनी-अपनी क्लास में चले गए। किरन मैम और बीना मैम उन टूटे हुए गुलदस्तों को उठाकर सही करने का प्रयास कर रहीं थीं मगर अब वह दोबारा उतने खूबसूरत नहीं लग रहे थे।

(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती हैं और पेशे से पत्रकार हैं।)

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

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