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दो खामोश आंखें – 5

योगेन्द्र सिंह छोंकर
हो जाऊं
जहाँ के लिए
मसीहा या फिर कातिल
मैं क्या हूँ
जानती हैं बखूबी
दो खामोश ऑंखें
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