विवेक दत्त मथुरिया (वरिष्ठ पत्रकार)
मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्राउस भी बरसाना की लठमार होली की एक झलक पाने के लिए घोड़े पर सवार होकर बरसाना पहुंचे। उन्होंने होली के आंखों देखे हाल का वर्णन अपने शोधपरक ग्रंथ मथुरा ए डिस्ट्रिक्ट मेमोयर’’ में किया है। राधाकृष्ण कालीन अलौकिक प्रेम की इस परंपरा का आकर्षण ही कुछ ऐसा है।
फागुन में ब्रज में चालीस दिन का होली के रूप में अनुराग महोत्सव बड़े ही उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। ब्रज में होली की विधिवत शुरुआत बरसाना-नन्दगांव की लठामार होली से ही होती है औऱ दाऊजी के हुरंगा के साथ ‘ढप धर दै यार गयी पर की…।’ के गायन के साथ संपन्न होती है।
हर किसी यह इच्छा रहती है कि जीवन में एक बार एक झलक बरसाना नंदगांव की लठमार होली की मिल जाए। जो एक बार नंदगांव-बरसाने के हुरियारे और हुरियारिनों के बीच होने वाली लठमार होली की झलक पा लेता है वह ब्रज के इस अनुपम प्रेम में सराबोर हो अपनी सुधबुध खो बैठता है।
मथुरा राजकीय संग्रहालय के संस्थापक और तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्राउस भी 22 फरवरी 1877 को अपने घोड़े की सवारी करते हुए बरसाना की लठमार होली देखने आए। मिस्टर ग्राउस ने जिस स्थान से होली देखी, यह स्थान आज भी कटारा हवेली के नाम से विख्यात है।
बरसाना के सांस्कृतिक इतिहास के जानकार योगेंद्र सिंह छौंकर बताते हैं कि इस हवेली का निर्माण भरतपुर रियासत के कूटनीतिज्ञ वकील व राजपुरोहित रूपराम कटारा ने कराया। उस समय इसी स्थान को होली के वीआईपी चौक के नाम से जाना जाता था । अंग्रेज कलेक्टर ग्राउस ने अगले दिन 23 फरवरी को नंदगांव की होली भी देखी। ग्राउस ने बरसाना की होली का आंखोंदेखा विवरण मथुरा मेमोयर में विस्तार से लिखा है।
ग्राउस ने नंदगांव बरसाना के हुरियारे और हुरियारिनों के बीच लठामार होली शुरू होने से पहले गाली युक्त हंसी-ठिठोली के ब्रज के परम्परागत नृत्य का वर्णन किया है। हुरियारिनों के लाठी के तेज प्रहारों से बचाव के लिए हुरियारे ढाल, डंडों के अलावा बारहसिंघा हिरन के सींग लिए बताए हैं। ग्राउस ने हास-परिहास के रूप में छंद साखियों का भी विस्तार से उल्लेख किया है ।