हमाम यानी स्नानघर। दुनिया में हमाम हजारों वर्ष पहले से प्रचलन में हैं। सिंधु घाटी की हड़प्प सभ्यता की खुदाई में मोहन जोदड़ो स्थान पर एक विशाल स्नानागार के अवशेष मिले हैं। राजाओं के महलों में भी स्नानागारों के अवशेष खूब मिलते हैं। तुर्क और मुगलकाल के समय पर सुल्तानों और बादशाहों के महलों में हमाम चलन में थे। राजे-रजवाड़ों में भी इनका चलन था। बाद के समय पर इनमें आधुनिक सुविधाओं का समावेश हो गया। आज हम चर्चा करते हैं भरतपुर के लोहागढ़ किले के हमाम के बारे में जो अपने समय का सर्वाधिक आधुनिक तकनीक से बना एक शानदार हमाम था।
क्या होता है हमाम का अर्थ
हमाम शब्द मूलतः अरबी भाषा का शब्द है। यह शब्द स्नानघर के लिए प्रचलित है। प्रारम्भ में यह हमाम एक पानी की हौद हुआ करते थे जिनमें पानी भरने और निकासी के लिए प्रबन्ध होता था। कालांतर में ये हमाम हाईटेक होते गए। इनमें गर्म और ठंडे पानी के लिए अलग-अलग प्रबंध हुए। सुगन्धित जल भरने के प्रबंध किए गए। फव्वारों की व्यवस्था हुई। रंग-बिरंगी टाइलें लगाई गईं।
मध्ययुग में हमाम निर्माण की शैली हुई हाईटेक
पंद्रहवीं शताब्दी में तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के सुल्तानों के महलों में हमाम स्थापत्य का प्रमुख हिस्सा हो गए थे। भारत में तुर्क-मुगल शासक वर्ग के आने के बाद यहां भी स्नानघर निर्माण की शैली बदल गयी। मुगलकाल में दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में भी महलों में हमाम निर्माण हुआ। यहां इंडो-पर्शियन शैली में हमाम बने जो रंग-बिरंगी टाइलों से सजे हुए होते थे। इनमें फव्वारे भी लगाए जाते थे। शाहजहां ने बुराहनपुर में मुमताज महल के लिए एक भव्य शाही हमाम का निर्माण कराया था। आमेर आदि स्थानों पर भी हमाम बनाये गए। उत्तर मध्यकाल और आधुनिक काल के प्रारंभ में राजपूत और जाट राजाओं ने अपने महलों में हमाम बनवाये। ये हमाम राजपूत और फ़ारसी स्थापत्य की मिश्रित शैली में बने थे।
महाराजा जवाहर सिंह ने कराया था निर्माण
भरतपुर के किले में हमाम का निर्माण महाराजा जवाहर सिंह ने कराया था। यह तुर्किश हमाम राजपूत और फ़ारसी शैली के मिश्रण से बना दृष्टिगोचर होता है। इसकी दीवारों पर अरायश प्लास्टर किया गया है। इन दीवारों और छतों को पुष्प-लता आदि के चित्रण से सजाया गया है। यह कई खण्डों में बंटा हुआ है। इसका अरायश प्लास्टर चिर स्थाई है। इसकी दीवारें और छत प्राकृतिक रंगों से आलागीला पद्धति से चित्रण किया गया है।
इंजीनियर होते हैं चकित
इस हमाम की तकनीक आज भी इंजीनियरों को चकित करती है। इस हमाम में हवा आने के लिए वातायन बनाये हुए हैं। प्राकृतिक रोशनी की व्यवस्था बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से की गई है। भट्टियों से पानी गर्म किया जाता है। ऊपरी छत पर विशाल हौद है जिसमें हमाम और फव्वारों के लिए जल संचित होता था। फव्वारों की भरतपुर के शिल्पियों की तकनीक तो आज के इंजीनियरों के लिए भी शोध का विषय है। यह हमाम राज परिवार के सदस्यों के लिए मसाज और भाप लेने जैसी आधुनिक सुविधाओं से युक्त था।