ब्रज मंडल की महिमा ऐसी है कि इसे सर्वोपरि माना गया है यही कारण है सभी देवता और तीर्थ यहां निवास करते हैं। ब्रज को आम तौर लोग यमुना के एक तरह गोकुल, बलदेव और रावल से लेकर यमुना के दूसरी ओर मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना और नन्दगांव तक सीमित मान लेते हैं। जबकि हकीकत इससे कहीं अलग है। हाल का मथुरा जनपद ब्रज के सम्पूर्ण क्षेत्र को कवर नहीं करता है। राजस्थान के भरतपुर जिले की कामां और डीग तहसीलों में भी ब्रज के कई महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं। हालांकि ये स्थान ब्रज के अन्य स्थलों की तरह बहुत प्रसिद्ध नहीं हुए हैं लेकिन इनकी महत्ता बहुत है।
अरावली पर्वत दुनिया का सबसे बूढा पर्वत है ब्रज में इस पर्वत के तीन शिखरों की त्रिदेवों के रूप में मान्यता है। गोवर्धन को गिरिराज यानी स्वयं श्रीकृष्ण या विष्णु के रूप में माना गया है। बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत है जिसको ब्रह्माजी का स्वरूप माना गया है। इस पर्वत के चार शिखर हैं भान गढ़, दान गढ़, मान गढ़ और विलास गढ़। नंदगांव में नंदीश्वर पर्वत है जिसको शिवजी का स्वरूप माना गया है। इसके अलावा ऊंचागांव में ललिता अटा पर्वत है, सुनहरा में सखिगिरी है। ढवाला, मान पुर आदि गांवों में धार्मिक महत्त्व के पर्वत शिखर हैं। इन सभी पर्वत शिखरों पर राधा-कृष्ण की लीलाओं की कई स्थलियाँ मौजूद हैं।
इन सबके अलावा ब्रज में कई अन्य पर्वत शिखर हैं जो राजस्थान के कामां और डीग उपखंडों में स्थित हैं। ब्रज का यह क्षेत्र ब्रज का हिमालय कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि हिमालय खण्ड में स्थित कई धर्म स्थल यहां भी मौजूद हैं। आदि बद्री, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, देव सरोवर, त्रिवेणी, हर की पैड़ी, लक्ष्मण झूला, नीलकंठ, पशुपतिनाथ आदि ऐसे ही कुछ नाम हैं।
हिमालय क्षेत्र में स्थित ये तीर्थ ब्रज में भला कैसे?
इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। मान्यता है कि कृष्ण जन्म के समय नन्दबाबा और यशोदा मैया दोनों ही वृद्ध अवस्था में थे। कृष्ण जब थोड़े बड़े हुए तो बूढ़े माँ-बाप ने उनसे चारों धामों की यात्रा पर जाने की इच्छा जताई। कृष्ण जी ने अपने माता-पिता की वृद्धावस्था को देखते हुए उन्हें चारों धामों की यात्रा पर जाने से मना कर दिया। श्रीकृष्ण ने सभी तीर्थों का आवाह्न कर उन्हें ब्रज में ही आने को कहा ताकि नंदबाबा-यशोदा मैया समेत सभी ब्रजवासी उन तीर्थों का दर्शन सकें। इस तरह ब्रज में आदि बद्री और केदारनाथ जैसे तीर्थ आ विराजे।
आदि बद्री
आदिबद्री धाम में आदिबद्री का प्राचीन मन्दिर स्थित है। श्रद्धालुओं के सहयोग से मन्दिर को भव्य रूप देकर नवनिर्माण किया गया है। इस मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को पुजारियों द्वारा प्रसाद के साथ-साथ छाछ पीने का आग्रह भी किया जाता है। आदिबद्री धाम मर संचालित गोशाला की गायों के दूध की यह छाछ यहां आने वाले श्रद्धालुओं को बेहद पसंद आती है।
तृप्त कुंड
तृप्त कुंड के बारे में एक कथा प्रचलित है। एक बार अग्निदेव ने ऋषियों से सर्वभक्षक पाप से मुक्ति का उपाय पूछा तो ऋषियों ने उन्हें बद्रीनाथ की यात्रा करने का सुझाव दिया। अग्निदेव ने बद्रीनाथ में जाकर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उन्हें पाप मुक्त होने का आशीर्वाद दिया। तब से अग्निदेव बद्रीनाथ में तृप्त जल के रूप में अवस्थित हैं। श्रीकृष्ण द्वारा सभी तीर्थों को ब्रज में बुलाने पर अग्निदेव भी तृप्त कुंड के रूप में यहां आए और श्रीकृष्ण ने उन्हें ब्रज में स्थान दिया।
गंगोत्री-यमुनोत्री, लक्ष्मण झूला, नीलकंठ महादेव
आदिबद्री धाम के आसपास बहुत से बहुत से ऐसे स्थान हैं जो श्रीकृष्ण और राधा रानी के पवित्र प्रेम की लीलाओं का साक्षी हैं। इन स्थलों का अनुसंधान विद्वान भक्तों द्वारा किया गया है। कहा जाता है कि सभी तीर्थ स्थल और बड़े-बड़े पर्वत भी ब्रज में स्थान चाहते थे। श्रीकृष्ण ने सभी को ब्रज में निवास दिया। आदिबद्री धाम में रोहितंचल पर्वत भी है जहाँ श्री राधा-कृष्ण ने केलि-विलास किया था। भगवान बद्रीनाथ ने श्रीराधा-कृष्ण के विहार के लिए स्वयं देव-सरोवर बनाया था। इस क्षेत्र में पांच वन हैं। देव सरोवर के ऊपर की ओर चन्दनवन, मन्दिर के सामने की ओर मालती वन, मन्दिर के ऊपर बद्रीवन, जहां देव सरोवर है, शांतिवन। रोहितंचल पर्वत के दाहिनी ओर तपोवन और बायीं ओर हिरन खोई है।
हिरन खोई के दाहिनी ओर नर पर्वत है और बायीं ओर नारायण पर्वत है। नारायण पर्वत से आगे चलने पर तीन शिखरों वाला त्रिकूट पर्वत है। नर पर्वत से आगे नील घाटी है। इस नील घाटी की शिलाएं नीली हैं जिन पर चलने से पैरों का रंग नीला हो जाता है। हिरन खोई के बायीं ओर गंधमादन पर्वत है। गंधमादन पर्वत के पीछे विंध्याचल पर्वतमाला है। विंध्याचल पर्वत के पश्चिम में कनकाचल पर्वत है इस पर्वत से आगे मैनाक पर्वत है और पश्चिमोत्तर में द्रोणगिरि और धवलगिरी पर्वत स्थित हैं।
पाप नाशिनी गंगा से आगे लक्ष्मण झूला है जिसकी चढ़ाई कठिन है। लक्ष्मण झूला के दाहिनी ओर गंगोत्री और यमुनोत्री हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री और पापनाशिनी गंगा से आगे बढ़ने पर गज-ग्राह शिला है। इसके आगे हरिद्वार है यहां हर की पौढ़ी की सीढ़ियां भी बनी हुई हैं।